सोनल वरणा धोरां ऊपर
मूँग, मोठ लहरावै रे
मोरण, सीटा और मतीरा
मरवण रे मन भावै रे
रे देखो खेता में झूम रही है बाजरियाँ
सावण बरसे भादवो
मुलके मरुधर माटी रे
बणठण चाली तीजणया
हाथी हौदे तीज रे
रे देखो बागा में झूल रही है कामणियाँ
होली आवे धूम मचावै
गूंजै फाग धमाळ रे
चँग बजावे घीनड़ घाले
उड़े रंग गुलाल रे
रे देखो होली में नाच रही है फागणियाँ
सरवर बौले सुवटा
बागां बोलै मोर रे
पणघट चाली गौरड़ी
कर सोलह सिंणगार रे
रे देखो पणघट पर बाज रही है पायलियाँ
बिरखा रे आवण री बेल्यां
चिड़ी नहावै रेत रे
आज पावणों आवलो
संदेशो देव काग रे
रे देखो मेड़ी पर बोल रियो है कागलियो।
[ यह कविता "एक नया सफर" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
No comments:
Post a Comment