Friday, August 17, 2012

वो पीता है, मैं नहीं








मैंने भानु प्रताप से कहा -
इतनी मत पिया कर
ये मौत की सहेली है
इससे दूर रहा कर

वह बोला -
मै कहाँ ज्यादा पीता हूँ
मैं तो सिर्फ एक पेग लेता हूँ
और दिन भर मस्त रहता हूँ

मैंने आश्चर्य से पूछा -
फिर क्यों रोज एक बोतल
खरीद कर लाते हो ?

वह एक दार्शनिक
अंदाज में बोला -
मैं तुमको समझाता हूँ
असली माजरा बताता हूँ

मैं एक पेग पीने के बाद
"मैं " मैं नहीं रहता
मैं "वो" बन जाता हूँ

अब मैं नहीं पीता
वो पीता है और
मैं उसे पिलाता हूँ

आखिर पिलाते-पिलाते 
बोतल खाली हो जाती है 
और मैं भी लुढ़क जाता हूँ।  



( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )

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