पंछीड़ा
तू कियां सिंझ्या
ढळया पेली
आय'र बैठ जावै
साग्ये रूखं माथै
सागी डाली माथै
ठांइ-ठौंङ
कांई एनाण-सैनाण है थार कनै
न कदैइ तू मारग भूल
नीं तू कदैही भटकै
चाहै बिरखा बरसो
चाहै बादळा गरजो
तू पूग ही ज्यावे पाछो
ठांइ-ठौंङ
म्हें तनै देख;र
लगाई ही पांख्या
उड़ग्यो आकासा मायं
छोड़ गाँव,घर,आंगणो
पण आज तांइ
पाछो कोनी पूग सक्यो
ठांइ-ठौंङ
आज भी चेतै आवै
गाँव का खेत
ताजी पुन रा लहरका
अगुण कूवै रो मीठो पाणी
आज भी फङफङावै पांख्या
पुगण ताई ठांइ-ठौंङ
पुगण ताई ठांइ-ठौंङ
पंछीड़ा तू आय
बैठ म्हारै कनै
बताय म्हने भी रसतो
कियांई पाछो पूग जावूँ
गाँव के घर में ठांइ-ठौंङ।
[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
गाँव के घर में ठांइ-ठौंङ।
[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
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