सावन का महीना लगते ही
सड़को पर दौड़े कावड़िये
रंग -बिरंगे कपड़े पहने
बम बम बोले कावड़िये
फुल और मालाओं से
कावड़ सजाते कावड़िये
कलशो में भर गंगा जल
पूजा करवाते कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये
कन्धों पर रख कावड़ को
मस्ती में चलते कावड़िये
मीलो पैदल चल -चल कर
शिव पूजन करते कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये
मार्ग के कंकर-पत्थर से
नहीं घबराते ये कावड़िये
खून बहे चाहे जितना
नहीं थकते ये कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये
लगा भोग शंकर के
भांग घोटते कावड़िये
खाते-पीते मस्ती करते
चलते जाते कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये
सुन्दर-सुन्दर शिविरों में
थकान मिटाते कावड़िये
हलवा-पुड़ी,खीर-जलेबी
भोग लगाते कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये
अबकी सावन गंगा को
स्वछ करेंगे कावड़िये
अगले सावन हर-हर गंगे
फिर से बोलेंगे कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये।
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
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