युनिवर्सिटी ऑफ़ पिट्टसबर्ग
'प्रेसवीटेरियन हॉस्पिटल'
हार्ट कैथ डिपार्टमेन्ट मेकाम करने वाली नर्स 'रोज़'
गुलाब की तरह खिलनेवाली
खिलखिला कर हँसने वाली
डिपार्टमेंट में सबकी प्यारी
जिन्दादिल नर्स 'रोज़'
जिन्दादिल नर्स 'रोज़'
उसकी हँसी का ठहाका
गूँजता पूरे डिपार्टमेंट में
जब भी हँसती दिल खोल
कर हँसती 'रोज़'
हरसिंगार फूल की तरह
झड़ती उसकी हँसी
सबका मन मोह लेती 'रोज़'
हँसते दूसरे भी
लेकिन वो हँसते कम
मुस्कराते ज़्यादा
ठहाका लगाती सिर्फ़ 'रोज़'
वह जब भी हँसती
बेड पर सोया बीमार भी
दर्द को भूल, मुस्करा उठता
सब के दिलों में बसी रहती
प्यारी नर्स 'रोज़'।
मुस्कराते ज़्यादा
ठहाका लगाती सिर्फ़ 'रोज़'
वह जब भी हँसती
बेड पर सोया बीमार भी
दर्द को भूल, मुस्करा उठता
सब के दिलों में बसी रहती
प्यारी नर्स 'रोज़'।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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